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मानवी शरीर को आवश्यक खनिज तत्व की जानकारी और उनके स्त्रोत।

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  खनिज तत्व (Mineral Elements)  खनिज लवण शरीर के निर्माण और वुद्धि के लिए जरूरी है। शरीर के सभी अंग सुचारू रूप से कार्य करें। इसके लिए खनिज तत्वों का होना जरूरी है।     शरीर का एक चौथाई भाग खनिजो से बना है।     यह तत्व 24 प्रकार के होते हैं जो निम्नलिखित है।   1 कैल्शियम 2 फास्फोरस 3 पोटैशियम 4 सल्फर  5 सोडियम 6 लोहा 7 मैग्निशियम 8 मैग्नीज  9 तांबा 10 आयोडिन 11 कोबाल्ट 12 जिंक  13 एलुमिनियम 14 आर्सेनिक, 15 ब्रोमीन  16 फ्लोमिन 17 निकिल 18 क्रोमियम  19 कैडमियम 20 सेलेनियम, 21 सिलिकन  22 वेनाडियम 23 क्लोरीन और  24 मोलीविडनम  उपर्युक्त खनिज तत्वों में से जो अधिक महत्व के है वह निम्नलिखित है।   कैल्शियम  कैल्शियम का कार्य दातों और अस्तियों का निर्माण करना और उन्हें स्वस्थ रखना है। कैल्शियम दूध दही, मट्ठा पनीर, अंडा, बदाम इत्यादि से प्राप्त किया जाता है इसकी। कमी में अस्थियां कमजोर हो जाती है। बच्चों को सूखा रोग हो जाता है।   फास्फोरस ।  यह पनीर, दूध, अंडा, गोश्त, मछली, दालों में पाया जाता है। यह रक्त में अम्ल और क्षार के प्रभाव को संतुलित करता है। दातो और अस्थियो को स्वस्थ रखता है, और यह शर

मानवी शरीर में जल की आवश्यकता और कार्य।

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  जल (Water ) मानवी शरीर मे जल का कार्य। जल के अभाव में व्यक्ति अधिक दिन तक जीवित नहीं रह सकता है। शरीर को इस की नितांत आवश्यकता होती है।          चयपचय क्रिया में इसकी आवश्यकता होती है। शरीर में 75 प्रतिशत जल होता है। सामान्य तौर पर एक वयस्क व्यक्ति को 1 दिन में 3 लीटर जल की जरूरत होती है।       जल मुत्र,  स्वसन, पसीना के द्वारा शरीर के बाहर निकलता है।  जल की शक्ति के द्वारा उत्तक प्रभावित होते हैं। साल्ट रक्त में और उत्तको में प्राप्त होता है।  सोडियम क्लोराइड के साथ चयापचय होता है। पीट्यूटरी ग्रंथि एक महत्वपूर्ण तत्व है, जो जल चयापचय को नियंत्रित करती है। यह विष तत्व और व्यर्थ पदार्थों को शरीर के बाहर मूत्र और पसीने के द्वारा निकाल देता है।       भोजन को पचाने में सहायता प्रदान करता है। सभी पाचक रसों को द्रवरूप में बदलता है। शरीर के ताप को नियंत्रित रखता है। शरीर के तंतुओ को मुलायम और लचीला रखता है।

शरीर को आवश्यक विटामिन के स्त्रोत और उनके कार्य।

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  विटामिन  विटामिन रासायनिक तत्वों का समूह है। यह कई प्रकार के होते हैं। विटामिन शरीर की प्रक्रिया उत्प्रेरक का कार्य करते हैं। शरीर की रक्षा के लिए जरूरी है। इन्हें दो वर्गों में रखा गया है। एक वर्ग के विटामिंस पानी में घुलने वाले होते हैं। और दूसरे प्रकार के विटामिन वसा या चिकनाई में नहीं घुल सकते हैं। विटामिन ए - यह हल्के पीले रंग का तेल जैसा द्रवों होता है इसका स्वाद और गंध मछली जैसा होता है। विटामिन ए के स्रोत - अंडा, मक्खन, दूध, समुद्री, मछली, मछली के जिगर का तेल गाजर, पपीता, संतरा, टमाटर, सब्जी में मिलता है।  विटामिन ए की कमी से रंधोति बीमारी होती है। फेफड़ों में संक्रमण ब्रांकी निमोनिया, कान, नाक में पीड़ा, पाचन तंत्र और मुत्र तंत्र के रोग हो जाते हैं। त्वचा का शुल्क होना, बालों का झड़ना आदि बीमारी होती है। विटामिन बी  यह ऐसे विटामिनों का समूह है जो मुख्य रूप से भोजन से प्राप्त होता है इस समूह के प्रमुख विटामिन है। b2 b3 b5, b 6, और B12   विटामिन b1 - इसे थाईमीन भी कहते हैं मनुष्य के शरीर को स्वस्थ रखने के लिए इसकी आवश्यकता होती है।   विटामिन b1 के स्त्रोत - अन्न की भूसी, मट

त्वचा और पैरों की देखभाल।

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  त्वचा और पैरों की देखभाल। हमारे संपूर्ण शरीर पर त्वचा का आवरण रहता है, वह शरीर के तापमान को नियंत्रित करती है। त्वचा पर छोटे- छोटे छेद होते हैं। इन्हीं से पसीना निकलता हैं। पसीना निकलना त्वचा की सेहद के लिए अच्छा होता हैं। इससे त्वचा साफ और आकर्षक एवं अच्छी लगती है। व्यक्ति घूमता है तो इसके कारण धूल त्वचा पर पडती  है जिससे वह गंदी हो जाती है और पसीना पसीने के निकलने से भी गंदी हो जाती है, यदि त्वचा की सफाई न की जाए तो इस गंदगी से त्वचा रोग उत्पन्न होने का भय रहता है।   त्वचा की सुरक्षा और स्वच्छता के लिए निम्न बातों का पर ध्यान देना चाहिए।  1 प्रति सुबह शाम व्यक्ति को स्नान करना चाहिए। 2 हमेशा ताजे और ठंडे पानी से स्नान करना चाहिए। ठंड में गुनगुने पानी से स्नान किया जा सकता है। 3 नहाते समय त्वचा को रगड़ कर साफ़ करना चाहिए।  4 त्वचा पर उबटन भी लगाना चाहिए।  5 ठंड के समय त्वचा पर तेल लगाकर नहाना चाहिए।  6 ठंडी के दिनों में धूप में बैठने  से त्वचा स्वस्थ रहती है। 7 स्नान के बाद तौलिए से रगड़ कर त्वचा को पोछना चाहिए, जिससे रक्त संचार तेज हो जाता है जो त्वचा के लिए लाभदायक होता है। 8 तेज

खुद को स्वस्थ कैसे रखे/ स्वस्थ रक्षा के नियम।

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  स्वस्थ रक्षा के नियम। स्वास्थ रक्षा के मुख्य रूप से निमलिखित छह वैज्ञानिक नियम बताए गए हैं। 1 शरीर पोषण के लिए उचित अन्न -  शरीर के पोषण के लिए भोजन में पोषक तत्वों की उचित मात्रा में उपस्थिति अनिवार्य होनी चाहिए। इन पोषक तत्वों के द्वारा शरीर में किसी प्रकार का रोग नहीं होता और शरीर के सभी अंग अच्छी तरह से कार्य करते हैं। पोषक तत्वों में मुख्य रूप से वसा प्रोटीन कार्बोहाइड्रेट, विटामिन, खनिज, लवण और जल का होना जरूरी है। जल से यहा अर्थ है कि पर्याप्त मात्रा में जल पीना चाहिए और जिस जल का हम प्रयोग कर रहे हैं, वह जल स्वच्छ होना चाहिए। पीने या स्नान करने में गंदे जल का प्रयोग करते हैं।तो उसे रोग की संभावना अधिक होती है। 2 प्रकाश और शुद्ध वायु-  प्रत्येक व्यक्ति को शरीर से अर्थ है कि वह ऐसी जगह पर ना रहे जहां दिन में भी अंधकार हो और अंधकार में रहते हो तो उससे शरीर पीला पड़ जाता है और व्यक्ति बीमार हो जाता है। अंधकार में विभिन्न प्रकार के कीटाणुओं और रोगानु उपस्थित रहते हैं। साथ ही शुद्ध वायु का अर्थ है कि जहां पर व्यक्ति रहे वहां पर गंदे नाले या फैक्ट्री या ना हो और जहां पर पास पड़ोस मे

कान की देखभाल और सुरक्षा।

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  कान की देखभाल और सुरक्षा। कानों की बनावट नाजुक एवं जटिल होती है। कान सुनने और संतुलन के महत्वपूर्ण कार्य को संचालित करते है। यह शरीर का महत्वपूर्ण अंग होता है। इस में खराबी आने से सुनने की प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न होती है। कानों की सुरक्षा के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए। 1 कभी भी कान पर थप्पड़ ना मारे, इससे कान का भीतरी पर्दा फट सकता है। व्यक्ती बहरा हो सकता है। 2 माचिस की तीली, कलम या हेयर पिन आदि से कान न न खुजलाएं। इससे कान की चमडी छिल सकती है। और संक्रमण होने की संभावनाएं रहती है। 3 कान में हाइड्रोजन पेरोक्साइड ना डलवाए। 4 बच्चे खेल खेलने में कान में कंकड, बीज डाल देते हैं। इससे इनको सावधान सावधान करना चाहिए। 5 कान को ठंडी हवा से बचाना चाहिए। सर्दी खांसी होने से कान को नुकसान पहुंचता है। 6 कान में संक्रमित होने या मध्य कान में पानी भर जाने से शीघ्र उचित इलाज करें।  7 कान दर्द, खुजली की शिकायत अक्सर नाक से सायनस या गले की बीमारी से होती है। इसलिए इस समय कान पर ध्यान देना चाहिए।  8 कान में वैकश या मैल है तब शुदध जैतून या मूंगफली आदि का तेल गर्म करने के बाद थोड़ा सा ठ

हाथों की देखभाल और सुरक्षा।

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  हाथों की देखभाल और सुरक्षा।  व्यक्ति को भोजन से लेकर जीवन के सभी कार्यों के लिए हाथ की आवश्यकता होती है इसलिए हाथों की सफाई पर विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए। हाथों को साफ पानी से बार-बार धोना चाहिए। पानी से हाथों को धो लेने से मात्र स्वच्छता नहीं हो जाती है। हाथों की देखभाल और स्वच्छता के लिए निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए। 1 भोजन करने, कोई भी कार्य करने के बाद, या हाथ पर मिट्टी लग जाने, या अन्य कोई पदार्थ लग जाने के बाद साबुन से हाथों को अच्छी तरह से धो लेना चाहिए। 2 गुनगुना पानी लेकर उसमें हाथों को धोने से चिकनाई और गंदगी साफ हो जाती है।  3 रसोई में रसोई का काम करने और कपड़े धुलाई के बाद हाथों पर कोल्ड क्रीम या लोशन लगाने से हाथ मुलायम और सुंदर बने रहते हैं।  4 हाथो के महत्वपूर्ण भाग नाखून होते हैं जिसकी सफाई रखना बहुत जरूरी है। यदि नाखून बढ़ गए हो तो नेलकटर से बड़े नाखून को काट देना चाहिए।  5 बड़े नाखून ही काटे नहीं जाते हैं तो उनके भीतर गंदगी भर जाती है और भोजन करने समय ऐसी गंदगी में जो कीटाणु रहते हैं वह पेट में जाकर बीमारी उत्पन्न करते हैं।  6 नाखून के ऊपरी भाग को विशेष र

मुंह और दांतों की देखभाल और सुरक्षा।

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  मुंह और दांतों की देखभाल और सुरक्षा। भोजन को दातों के द्वारा भले प्रकार से काटा और पीसा जाता है। इसलिए दात गंदे हो जाते है और भोजन के टुकड़े और रेसे दातों में फंसे रहते हैं। यदि इनकी सफाई न की जाए तो सडन होने लगती है जिससे दांत कमजोर हो जाते हैं और गिरने लगते हैं। इसके साथ ही सड़ने से दांतों के इनेमल को नष्ट कर देता है, जिससे दातों की चमक समाप्त हो जाती है। दातों में ठंडा गरम का प्रभाव दर्द के रूप में कष्ट देने लगता है यदि। दातों पर व्यक्ति ध्यान नहीं देता है, तो पायरिया रोग का शिकार हो जाता है और मुंह से बदबू आने लगती है। मुंह को पानी से दिन में दो या तीन बार भली प्रकार से धोना चाहिए। दातों को साफ हो और स्वस्थ रखने के लिए निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए।  1 दिन में दो बार दांतों को ब्रश करना चाहिए नीम       और बबूल की दातुन करने से दांत स्वस्थ और          मजबूत रहते हैं।  2 किसी भी समय खाने पीने के बाद हमेशा मुंह          साफ करना चाहिए। 3 मिठाईयां या चिपचिपी चीजें खाने से बचना            चाहिए। 4 सलाद, कच्चा गाजर जैसी पोषक खाद्य पदार्थ        खाना चाहिए। 5 दंत चिकित्सक के पास

आंखों की देखभाल कैसे करें।

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  आंखों की देखभाल । आंख शरीर का महत्वपूर्ण अंग माना गया है, क्योंकि इसकी अभाव से व्यक्ति कुछ भी देख नहीं सकता है। इसकी सुरक्षा व स्वच्छता पर विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए। आंख के माध्यम से ही प्यार, ममता, क्रोध आदि भावों की अभिव्यक्ति हो पाती है। आंखों की एक आम समस्या है, इसके नीचे घेरे बनना,  काले घेरे तनाव नींद, की कमी और संतुलित भोजन अधिक परिश्रम, कमजोरी, लंबी बीमारी आदि के कारण होते हैं। यदि थोड़ी सी देखभाल की जाए तो आंखे के नीचे पडने वाले काले घेरों की समस्या से छुटकारा मिल सकता है। इसके लिए एक चम्मच बादाम रोजाना आधा चम्मच नींबू का रस मिलाकर आंखों के नीचे लगाना लाभकारी होता है।  आंखों की सुरक्षा के लिए निम्नलिखित कार्य करना चाहिए। 1 आंख की मालिश करने से रक्त संचार बढ़ता है और आराम मिलता है।  2 भरपूर नींद सोना चाहिए  3 आंखों को थकान महसूस होने पर नमक मिले। पानी को आंखों पर छिड़कने से इसके लिए आधा लीटर पानी को उबालकर ठंडा करें और उसमें एक चम्मच नमक मिला लें और उस पानी से आंखों को धोएं।  4 आंखों में गुलाब जल डालना चाहिए।  5 संतुलित आहार लेना चाहिए।  6 आहार में विटामिन ए युक्त खाद्य प

उष्ट्रासन करने की विधी और फायदे।

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  उष्ट्रासन  उष्ट्र का मतलब ऊंट इस आसन में शरीर स्थिति ऊंट की तरह दिखती है, इसलिए इसे उष्ट्रासन किसे कहा जाता है। मुलस्थिती -  दोनों पैर लंबे करके दंडासन में बढ़ जाए।  कृति - 1 दोनों पैर लंबे कर बैठ जाए, अब दण्डासन मे बैठ जाए।  2 घुटने पर खड़े रहना है। 3 पीछे मुड़कर सीधे हाथ से टाच को पकड़ना है। 4 इस तरह बाय टच को भी वहां से पकड़ना है। 5 कमर को थोड़ा सामने ढकल कर कर सिर और गर्दन को पीछे छोड़े। 6 अब कुछ देर इसी स्थिति में रुकना है, अब अवयवों का तान कम करके सांसो पर ध्यान लगाना है।   आसन छोड़ते समय।  1 गर्दन सीधी करके सीधे हाथ की पकड़ छोड़ें। 2 बाए हाथ की पकड़ छोड़ें।  3 कमर और पीठ सीधी कर ले। 4 घुटनों पर आए। 5 पूर्व स्थिति वज्रासन में आए। लाभ  1 पचनशक्ती सुधरती है। 2 जांघ की चर्बी कम होती है। 3 कंधे और पीठ के स्नायु को व्यायाम मिलता है। 4 छाती के स्नायु का व्यायाम होकर स्वसन क्षमता      में सुधार होता है।  5 रीड की हड्डी मजबूत होती है। 6 पेट की आंतों का विकास होता है। 7 पेट के विकार दूर होते है। 8 शरीर की कार्य क्षमता बढ़ती है।