विद्यार्थीयो की बैठक की अवस्था कैसी हो?

 विद्यार्थीयो की बैठने की अवस्था।

 बैठने के तीन प्रकार मुद्राय (अंगविन्यास )होती हैं।

1 सामान्य बैठक 

2 पढ़ते समय की बैठक और 

3 लिखते समय की बैठक 


1 सामान्य बैठक -

 यह बैठने की ऐसी सामान्य अवस्था है जिसमें बैठने वाला ऐसी अवस्था बनाता है जिसमें उसकी पेसीओ को कमसे - कम तनाव तथा खिंचाव का अनुभव हो। सामान्य बैठक की अवस्था में शरीर के अंग सिर, कंदे तथा कमर ( हिप्स) एक-दूसरे से श्रेणीबद्ध रहकर ठीक प्रकार से स्थिती में धड़, सिर तथा कंधों को प्राकृतिक अवस्था में सतर में स्थिती, सहज अवस्था मे रहने चाहिए  खासतौर से प्लबर स्पाईन की वक्रता को दूर करते हुए स्पाइन की प्राकृतिक वक्रता को बनाए रखना चाहिए। सामान्य बैठक में जांघे  सम - समांतर, टांगे वर्टिकल तथा पंजे जमीन पर चपटी स्थिति में विश्राम अवस्था में  रहनी चाहिए। हाथ की कोहनीयो से थोड़े सटे होकर जांघो के ऊपर रहे।

 बार-बार स्थिति बदलते रहने से थकान पैदा नहीं होती तथा किसी व्यक्ति को कुर्सी पर बैठने के बाद भी उसे सख्त स्थिति में बैठे रहने की बजाय हिलते - डुलते रहना चाहिए। बैठने वाला व्यक्ति अपने शरीर के भार को सहारा देने के लिए अधीक स्थान घेरता  है ताकि उसका दबाव सामान्य रूप से बट सकें। कुर्सी की गददीं की ऊंचाई इस हिसाब से रखना चाहिए कि बैठने वाले की टांग जागो पर दबाव न पड़े, तथा यह निचली टांगो की लंबाई से थोड़ा कम होना चाहिए जबकि व्यक्ति अपने पैरों को चपटे आकार में जमीन पर रखे तो उसके घुटने सम कोनिय  स्थिति में ज़ुकी रहे। कुर्सी मे पीछे टिकने की सरचना भी होनी चाहिए जिससे कि स्पाइन से प्लबर को सहारा मिल सके। दोषपूर्ण बैठने का शरीर विन्यास स्पाइन की प्राकृतिक वक्रता पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है और इसके परिणाम स्वरूप स्पाइनल में बेडौलता पैदा हो जाती है।


 2 पढ़ते समय की बैठक स्थिति।

 पढ़ते समय का शरीर का विन्यास सामान्य प्रकार के बैठने की व्यवस्था की  अनुरूप ही होता है। अंतर केवल इतना होता है कि पठनीय सामग्री के नेत्रों के कोन से दुरी को ध्यान में रखा जाए जाना चाहिए। समान्यतः नेत्रों तथा पठनीय सामग्री के बीच की दूरी लगभग 30 सेंटीमीटर तथा पठनिय वस्तु सम समांतर कोण 45 अंश का होना चाहिए। सामान्य बैठक अवस्था की तुलना में पीठ को जरा अधिक स्तर पर।रखना पड़ता है।

 पढ़ने वालों के लिए प्रकाश की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। पढ़ने वालों की पीठ के पीछे से प्रकाश पठनीय सामग्री पर पढ़ना चाहिए पढ़ने के लिए बैठने के लिए बिल्कुल सही प्रकार का फर्नीचर उपयोग करना चाहिए। यह न तो बहुत ऊंचा और ना बहुत नीचा हो और न ही अधिक ढलानवाला। पढ़ने वाली सामग्री को हाथ से पकड़े हुए मेज पर आराम से रखे हो। ऐसा अक्सर देखा गया है कि पढ़ते समय बच्चे त्रुटिपूर्ण अंग विन्यास कर लेते हैं जोकि कई प्रकार की शारिरिक खराबी के साथ साथ नेत्र की दृष्टि की समस्या को पैदा कर देती है।

 3 लिखते समय की बैठक। 

लिखते समय कुर्सी को टेबल  के नीचे तक खींच लेते हैं ताकि बालक की कोहनीया टेबल पर आराम से रखी जा सके तथा बाहे लगभग सम - समांतर स्थिति में आ सके। जांघे  सम - समांतर होने चाहिए तथा टांगें वर्टिकल तथा पंजे चपटे आकार में जमीन पर स्थित रहे। यह ध्यान में रखना चाहिए कि टेबल की ऊंचाई बालक तथा कुर्सी के अनुसार होनी चाहिए। मेज की सतह की बालक की और ढालू होना चाहिए ताकि उसे लिखने का काम करना आसान हो सके। इस प्रकार से शरीर विन्यास में बालक को पढ़ने के लिए बैठने के ढंग की तुलना में थोड़ा आगे को ज़ुककर बैठना होता है। ठीक ढंग से लिखने के लिए शरीर विन्यास को आवश्यक रूप से आगे की और एक तरफ तथा झुकाने को टालना चहिय।

विद्यार्थीयो की बैठक की अवस्था कैसी हो?


टिप्पणियाँ

  1. विद्यार्थीयो की बैठने की अवस्था।

    बैठने के तीन प्रकार मुद्राय (अंगविन्यास )होती हैं।

    1 सामान्य बैठक

    2 पढ़ते समय की बैठक और

    3 लिखते समय की बैठक



    1 सामान्य बैठक -

    यह बैठने की ऐसी सामान्य अवस्था है जिसमें बैठने वाला ऐसी अवस्था बनाता है जिसमें उसकी पेसीओ को कमसे - कम तनाव तथा खिंचाव का अनुभव हो। सामान्य बैठक की अवस्था में शरीर के अंग सिर, कंदे तथा कमर ( हिप्स) एक-दूसरे से श्रेणीबद्ध रहकर ठीक प्रकार से स्थिती में धड़, सिर तथा कंधों को प्राकृतिक अवस्था में सतर में स्थिती, सहज अवस्था मे रहने चाहिए खासतौर से प्लबर स्पाईन की वक्रता को दूर करते हुए स्पाइन की प्राकृतिक वक्रता को बनाए रखना चाहिए। सामान्य बैठक में जांघे सम - समांतर, टांगे वर्टिकल तथा पंजे जमीन पर चपटी स्थिति में विश्राम अवस्था में रहनी चाहिए। हाथ की कोहनीयो से थोड़े सटे होकर जांघो के ऊपर रहे।

    बार-बार स्थिति बदलते रहने से थकान पैदा नहीं होती तथा किसी व्यक्ति को कुर्सी पर बैठने के बाद भी उसे सख्त स्थिति में बैठे रहने की बजाय हिलते - डुलते रहना चाहिए। बैठने वाला व्यक्ति अपने शरीर के भार को सहारा देने के लिए अधीक स्थान घेरता है ताकि उसका दबाव सामान्य रूप से बट सकें। कुर्सी की गददीं की ऊंचाई इस हिसाब से रखना चाहिए कि बैठने वाले की टांग जागो पर दबाव न पड़े, तथा यह निचली टांगो की लंबाई से थोड़ा कम होना चाहिए जबकि व्यक्ति अपने पैरों को चपटे आकार में जमीन पर रखे तो उसके घुटने सम कोनिय स्थिति में ज़ुकी रहे। कुर्सी मे पीछे टिकने की सरचना भी होनी चाहिए जिससे कि स्पाइन से प्लबर को सहारा मिल सके। दोषपूर्ण बैठने का शरीर विन्यास स्पाइन की प्राकृतिक वक्रता पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है और इसके परिणाम स्वरूप स्पाइनल में बेडौलता पैदा हो जाती है।



    2 पढ़ते समय की बैठक स्थिति।

    पढ़ते समय का शरीर का विन्यास सामान्य प्रकार के बैठने की व्यवस्था की अनुरूप ही होता है। अंतर केवल इतना होता है कि पठनीय सामग्री के नेत्रों के कोन से दुरी को ध्यान में रखा जाए जाना चाहिए। समान्यतः नेत्रों तथा पठनीय सामग्री के बीच की दूरी लगभग 30 सेंटीमीटर तथा पठनिय वस्तु सम समांतर कोण 45 अंश का होना चाहिए। सामान्य बैठक अवस्था की तुलना में पीठ को जरा अधिक स्तर पर।रखना पड़ता है।

    पढ़ने वालों के लिए प्रकाश की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। पढ़ने वालों की पीठ के पीछे से प्रकाश पठनीय सामग्री पर पढ़ना चाहिए पढ़ने के लिए बैठने के लिए बिल्कुल सही प्रकार का फर्नीचर उपयोग करना चाहिए। यह न तो बहुत ऊंचा और ना बहुत नीचा हो और न ही अधिक ढलानवाला। पढ़ने वाली सामग्री को हाथ से पकड़े हुए मेज पर आराम से रखे हो। ऐसा अक्सर देखा गया है कि पढ़ते समय बच्चे त्रुटिपूर्ण अंग विन्यास कर लेते हैं जोकि कई प्रकार की शारिरिक खराबी के साथ साथ नेत्र की दृष्टि की समस्या को पैदा कर देती है।

    3 लिखते समय की बैठक।

    लिखते समय कुर्सी को टेबल के नीचे तक खींच लेते हैं ताकि बालक की कोहनीया टेबल पर आराम से रखी जा सके तथा बाहे लगभग सम - समांतर स्थिति में आ सके। जांघे सम - समांतर होने चाहिए तथा टांगें वर्टिकल तथा पंजे चपटे आकार में जमीन पर स्थित रहे। यह ध्यान में रखना चाहिए कि टेबल की ऊंचाई बालक तथा कुर्सी के अनुसार होनी चाहिए। मेज की सतह की बालक की और ढालू होना चाहिए ताकि उसे लिखने का काम करना आसान हो सके। इस प्रकार से शरीर विन्यास में बालक को पढ़ने के लिए बैठने के ढंग की तुलना में थोड़ा आगे को ज़ुककर बैठना होता है। ठीक ढंग से लिखने के लिए शरीर विन्यास को आवश्यक रूप से आगे की और एक तरफ तथा झुकाने को टालना चहिय।

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