वृक्षासन करणे की विधी और लाभ।
वृक्षासन!
इस आसन में हमारे शरीर का आकार वृक्ष के समान दिखता है इसलिए इसे वृक्षासन कहा जाता है।
कृति / विधि-
1 सबसे पहले कोई भी एक पैर पर सीधे खड़े रहना है। अगर शरीर का तोल एक पैर पर संभालना मुश्कील होतो दीवार का सहारा ले सकते हैं।
2 उसके बाद दूसरा पैर घुटने में से मोड कर पहले पैर के जांघ के ऊपर रखना है।
3 दोनो हाथ सर से उपर मीलाए।
4 इस स्थिती मे आकाश की तरफ नमस्कार की स्थिती प्राप्त होगी।
5 इस स्थिती मे धिरे-धिरे सांस भरना है। साधारणत: 10 सेकंड तक ऐसी स्थिति में रुकना है। इसके बाद यह क्रिया दूसरे पैर से भी करनी है।
6 एक बार में से चार से छह बार यह क्रिया सकते हैं।
फायदे/ लाभ -
1 इस आसन से शरीर के हर जोड को अच्छा व्यायाम मिलता है।
2 इस आसन में हमारे पैर की उंगलीया, घुटने, हाथ के जोड़, आदी मे अच्छा रक्त प्रवाह संचालित होता है।
3 पैर मजबूत, छाती भरदार और शरीर सुडौल बनता है।
4 इससे शरीर की धारणा शक्ति में बढ़ोतरी होती है।
5 भावना की पोषण के लिए यह आसन उपयोगी है।
वृक्षासन!
जवाब देंहटाएंइस आसन में हमारे शरीर का आकार वृक्ष के समान दिखता है इसलिए इसे वृक्षासन कहा जाता है।
कृति / विधि-
1 सबसे पहले कोई भी एक पैर पर सीधे खड़े रहना है। अगर शरीर का तोल एक पैर पर संभालना मुश्कील होतो दीवार का सहारा ले सकते हैं।
2 उसके बाद दूसरा पैर घुटने में से मोड कर पहले पैर के जांघ के ऊपर रखना है।
3 दोनो हाथ सर से उपर मीलाए।
4 इस स्थिती मे आकाश की तरफ नमस्कार की स्थिती प्राप्त होगी।
5 इस स्थिती मे धिरे-धिरे सांस भरना है। साधारणत: 10 सेकंड तक ऐसी स्थिति में रुकना है। इसके बाद यह क्रिया दूसरे पैर से भी करनी है।
6 एक बार में से चार से छह बार यह क्रिया सकते हैं।
फायदे/ लाभ -
1 इस आसन से शरीर के हर जोड को अच्छा व्यायाम मिलता है।
2 इस आसन में हमारे पैर की उंगलीया, घुटने, हाथ के जोड़, आदी मे अच्छा रक्त प्रवाह संचालित होता है।
3 पैर मजबूत, छाती भरदार और शरीर सुडौल बनता है।
4 इससे शरीर की धारणा शक्ति में बढ़ोतरी होती है।
5 भावना की पोषण के लिए यह आसन उपयोगी है।