सुप्त वज्रासन करणे की विधी और लाभ।
सुप्त वज्रासन!
सुप्त वज्रासन की अवस्था अर्धशवासन के जैसी होती है। कुछ मात्रा में वह मत्स्यासन के कक्षा में मानी जाती है। वज्रासन करने में कौसल्या प्राप्त होने के बाद ही यह आसन करना चाहिए। यह आसन वज्रासन से शरीर को अधिक शक्ति प्राप्त कर कर करा देती है।
कृति/ विधि।
1 प्रथम वज्रासन अवस्था में बैठना है।
2 हातो के सहारे जमीन पर सोना है।
3 पीठ को जमीन का स्पर्श होना चाहिए।
4 आपने दोनों हाथ की घड़ी बनाकर छाती पर रखे या अपने शरीर के बाजू में जमीन पर भी रख सकते हो। इस प्रकार सर को अंदर खींचना है।
5 8 से 10 से सेकंड इस अवस्था में रहना है।
6 शुरुआत में कुछ दिन रीढ़ की हड्डी / पीठका पूरा भाग जमीन पर नहीं टिकेगा। पर नियमित सराव से यह अच्छी तरह से कर सकते हैं ।
7 इस आसन की दिन में तीन से चार वर्तने कर सकते हो।
लाभ / फायदे
1 इस आसन में रीढ़ की हड्डी को पीछे के बाजू में खिंचा जाता है, इससे पीठ का बाकंपन होगा, वह इस आसन से चले जाता है और रीढ़ की हड्डी मजबूत बनती है।
2 यह आसन नियमित करने से कुंडलिनी ऊर्ध्वगमन करने लागती है।
3 पैर के संधि और स्नायु मजबूत बनते हैं।
4 छाती, रीड की हड्डी और गर्दन इस शरीर के भागों को परिपूर्ण व्यायाम मिलता है, और यह अच्छी तरीके से कार्यक्षम बनते हैं।
5 सभी अंतः स्रावी ग्रंथि सक्रिय बनते हैं। उससे शरीर निरोगी और स्फूर्तीशील रहता है।
6 मधुमेह के रोगियों के लिए यह आसन अत्यंत लाभदायक है। क्योंकि इस आसन में स्वादुपिंड की सभी ग्रंथी सक्रिय बनती है। और रक्ताभिसरण सुधरता है। इसलिए स्वादुपिंड नैसर्गिक रूप में कार्यरत होते हैं।
7 ओटी पेट के उपर खिचाव अणे से पेट, आत, लीवर, मूत्रपिंड, प्लीहा इनके सभी दोष दूर होकर वह मजबूत बनते हैं और साथ ही पेट की सभी तकरार भी दूर होते हैं।
8 अजीर्ण, वायु विकार, बद्धकोष्टता, और मूलव्याध के लिए या सार्वोत्तम उपाय है।
9 यह आसन करने से पचनसंस्था कार्यक्षम रहती है।
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