प्राणायाम करने की विधि।

 प्राणायाम करने की विधि।

प्राणायाम करने से पहले हमें  पूरक, रेचक, और कुंभक इस क्रिया को अच्छे तरह से समझना होगा।

प्राणायाम विधी :- प्राणायाम करने  के लिए प्रथम बायी  और दहनी नाकपुडी बंद करनी होता है। साधारणत: सीधे (दाहिने) हाथ से यह काम करना है। सीधे हाथ के अंगूठे से बायी नाकपुडी और  वही हाथ की अनामिका और छोटी उंगली से नाकपुडी बंद करनी होती है। इस प्रकार से जो मुद्रा तैयार होती है, उस हाथ की मुद्रा को प्रणव मुद्रा कहते हैं।

प्रणव मुद्रा
प्रणव मुद्रा

 जब नाकपुडी बंद करने की जरूरत नहीं होती। तब दोनों हाथ घुटने पर। होने चाहिए।

 प्राणायाम करने के लिए पद्मासन, सिद्धासन, स्वस्तिकासन, या सुखासन में बैठना चाहिए।


प्राणायाम मे पूरक, रेचक, और कुंभक इन तीन अंगों का समावेश होता है।

1 पूरक - 

पूरक यह व्यामाम का प्रथम अंग है। इसमें सांस को अंदर लेना होता है। पर केवल श्वास अंदर लेने से यह क्रिया पूर्ण नहीं होती। विशिष्ट पद्धति से और मनोयोगपूर्वक सांस अंदर लेने से यह क्रिया पूरी होती है।

 पूरी क्रिया अच्छी तरह से समझने के लिए। निम्नलिखित बातो को ध्यान रखना चाहिए।

1 फेफड़ों में जमा सब हवा बाहर निकालने के बाद ही पूरक क्रिया को शुरुआत करनी चाहिए।

2 पूरक करते समय सांस धीरे-धीरे अंदर लेनी चाहिए।

3  शुरू से आखरी तक पूरक  क्रिया करने की गति एक समान रखनी है इसका अर्थ है कि पूर्वक करते समय। शुरुआत की पहले सेकंड में जितनी हवा अंदर ली जाए उतनी हवा आखिरी सेकंड तक अंदर लेनी चाहिए।

4 सामान्यत: सांस लेते समय पेट बाहर आना चाहिए। पूरक करते समय पेट बाहर आने के बाद उस पर नियंत्रण रखना है। पेट पूरी तरह से बाहर नहीं आना चाहिए इस दरमियान छाती को बाहर लाना है और पेट बाहर आने पर नियंत्रण अगर प्राप्त कर लेते हो तो छाती ज्यादा बाहर आएगी। इसका परिणाम फेफड़ों में अधिक हवा जमा होगी।

5 पूरक क्रिया करते समय पेट और फेफड़ों का भाग बाहर आएगा। इस पर विशेष ध्यान देना चाहिए ऐसे करने से सांसो पर नियंत्रण आकर देर तक पूरक  करने मे सहाय्यता होती है।

6 पूरक के अंतिम पड़ाव मे जोर से झटका देकर सांस अंदर खींचने का प्रयत्न नहीं करना चाहिए। इससे अधिक हवा अंदर जाएगी ऐसा नहीं?  इससे नुकसान ही होगा। 

2 रेचक -

 रेचक मतलब विशिष्ट तरह से लक्ष्य पूर्वक सांस को बाहर निकालने की क्रिया। 

सही ढंग से रेचक क्रिया करने के लिए नीचे दिए गए बातों पर ध्यान देना चाहिए।

1 जिस नाकपुडी से सांस छोड़ना है, वह खुली रखना है, दूसरी नाकपुडी बंद रखना है।

2 रेचक का कालावधी पूरक से दुगना होना चाहिए। इसलिए रेचक करते समय कभी भी गड़बड़ी नही करना चाहिए। 

3 रेचक के गति से पेट और छाती संकुचित हो जाती है। छाती पूर्णता अंकुचन के बाद पेट का अंकुचन भी होता है। पेट का जितना अंकुचन हो अच्छा है। पर अतिरिक्त जोर नहीं लगाना चाहिए।

कुंभक 

कुंभक का मतलब सांस को अंदर रोकना होता है। सांस को अंदर लेकर उसे रोकना यह आंतरिक कुंभक कहलाता है। और सांस को बाहर छोड़ कर सांस को रोके रखना यह बाह्य कुंभक कहते हैं। इसी प्रकार पूरक और रेचक इस दोनों से विरहित क्रिया को केवल कुंभक कहते है। जब तक केवल कुंभक सिद्ध नहीं होता है तब तक सहित कुंभक का अभ्यास करना चाहिए। केवल कुंभक को सर्वश्रेष्ठ व्यायाम माना गया है।

 कुंभक का कालावधी। कितना चाहिए इसके लिए नीचे दिए गए बातो को ध्यान में रखना आवश्यक है।

1 कुंभक करते समय कोई भी अड़चन या परेशानी नहीं होना चाहिए।

2 रेचक करते समय गड़बड़ी या उतावलापन नहीं करना चाहिए।


विशेष बात - प्राणायाम में पूरक, कुंभक और रेचक इन का प्रमाण। सर्वप्रथम कुंभक का प्रमाण निश्चित कर लेना चाहिए। कुंभक का प्रमाण निश्चित करने के लिए 3 बाते ध्यान में रखना चाहिए। कुंभक में किसी भी प्रकार की कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए। रेचक करते समय जल्दबाजी में नहीं करना चाहिए।इसलिए निश्चित की गई मात्रा या प्रमाण सब दोहराव की क्रिया में अच्छे से समझ लेना चाहिए। कुंभक का प्रमाण निश्चित करने के बाद उस आधार पर पूरक और रेचक का प्रमाण खुद-ब-खुद। ठहराया जाएगा।



टिप्पणियाँ

  1. 👍🏻👍🏻👍🏻👍🏻👍🏻👍🏻👍🏻👍🏻👍🏻👍🏻👍🏻👍🏻👍🏻👍🏻👍🏻👍🏻👍🏻👍🏻

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  2. प्राणायाम करने से पहले हमें पूरक, रेचक, और कुंभक इस क्रिया को अच्छे तरह से समझना होगा।

    प्राणायाम विधी :- प्राणायाम करने के लिए प्रथम बायी और दहनी नाकपुडी बंद करनी होता है। साधारणत: सीधे (दाहिने) हाथ से यह काम करना है। सीधे हाथ के अंगूठे से बायी नाकपुडी और वही हाथ की अनामिका और छोटी उंगली से नाकपुडी बंद करनी होती है। इस प्रकार से जो मुद्रा तैयार होती है, उस हाथ की मुद्रा को प्रणव मुद्रा कहते हैं।


    प्रणव मुद्रा
    जब नाकपुडी बंद करने की जरूरत नहीं होती। तब दोनों हाथ घुटने पर। होने चाहिए।

    प्राणायाम करने के लिए पद्मासन, सिद्धासन, स्वस्तिकासन, या सुखासन में बैठना चाहिए।



    प्राणायाम मे पूरक, रेचक, और कुंभक इन तीन अंगों का समावेश होता है।

    1 पूरक -

    पूरक यह व्यामाम का प्रथम अंग है। इसमें सांस को अंदर लेना होता है। पर केवल श्वास अंदर लेने से यह क्रिया पूर्ण नहीं होती। विशिष्ट पद्धति से और मनोयोगपूर्वक सांस अंदर लेने से यह क्रिया पूरी होती है।

    पूरी क्रिया अच्छी तरह से समझने के लिए। निम्नलिखित बातो को ध्यान रखना चाहिए।

    1 फेफड़ों में जमा सब हवा बाहर निकालने के बाद ही पूरक क्रिया को शुरुआत करनी चाहिए।

    2 पूरक करते समय सांस धीरे-धीरे अंदर लेनी चाहिए।

    3 शुरू से आखरी तक पूरक क्रिया करने की गति एक समान रखनी है इसका अर्थ है कि पूर्वक करते समय। शुरुआत की पहले सेकंड में जितनी हवा अंदर ली जाए उतनी हवा आखिरी सेकंड तक अंदर लेनी चाहिए।

    4 सामान्यत: सांस लेते समय पेट बाहर आना चाहिए। पूरक करते समय पेट बाहर आने के बाद उस पर नियंत्रण रखना है। पेट पूरी तरह से बाहर नहीं आना चाहिए इस दरमियान छाती को बाहर लाना है और पेट बाहर आने पर नियंत्रण अगर प्राप्त कर लेते हो तो छाती ज्यादा बाहर आएगी। इसका परिणाम फेफड़ों में अधिक हवा जमा होगी।

    5 पूरक क्रिया करते समय पेट और फेफड़ों का भाग बाहर आएगा। इस पर विशेष ध्यान देना चाहिए ऐसे करने से सांसो पर नियंत्रण आकर देर तक पूरक करने मे सहाय्यता होती है।

    6 पूरक के अंतिम पड़ाव मे जोर से झटका देकर सांस अंदर खींचने का प्रयत्न नहीं करना चाहिए। इससे अधिक हवा अंदर जाएगी ऐसा नहीं? इससे नुकसान ही होगा।

    2 रेचक -

    रेचक मतलब विशिष्ट तरह से लक्ष्य पूर्वक सांस को बाहर निकालने की क्रिया।

    सही ढंग से रेचक क्रिया करने के लिए नीचे दिए गए बातों पर ध्यान देना चाहिए।

    1 जिस नाकपुडी से सांस छोड़ना है, वह खुली रखना है, दूसरी नाकपुडी बंद रखना है।

    2 रेचक का कालावधी पूरक से दुगना होना चाहिए। इसलिए रेचक करते समय कभी भी गड़बड़ी नही करना चाहिए।

    3 रेचक के गति से पेट और छाती संकुचित हो जाती है। छाती पूर्णता अंकुचन के बाद पेट का अंकुचन भी होता है। पेट का जितना अंकुचन हो अच्छा है। पर अतिरिक्त जोर नहीं लगाना चाहिए।

    कुंभक

    कुंभक का मतलब सांस को अंदर रोकना होता है। सांस को अंदर लेकर उसे रोकना यह आंतरिक कुंभक कहलाता है। और सांस को बाहर छोड़ कर सांस को रोके रखना यह बाह्य कुंभक कहते हैं। इसी प्रकार पूरक और रेचक इस दोनों से विरहित क्रिया को केवल कुंभक कहते है। जब तक केवल कुंभक सिद्ध नहीं होता है तब तक सहित कुंभक का अभ्यास करना चाहिए। केवल कुंभक को सर्वश्रेष्ठ व्यायाम माना गया है।

    कुंभक का कालावधी। कितना चाहिए इसके लिए नीचे दिए गए बातो को ध्यान में रखना आवश्यक है।

    1 कुंभक करते समय कोई भी अड़चन या परेशानी नहीं होना चाहिए।

    2 रेचक करते समय गड़बड़ी या उतावलापन नहीं करना चाहिए।




    विशेष बात - प्राणायाम में पूरक, कुंभक और रेचक इन का प्रमाण। सर्वप्रथम कुंभक का प्रमाण निश्चित कर लेना चाहिए। कुंभक का प्रमाण निश्चित करने के लिए 3 बाते ध्यान में रखना चाहिए। कुंभक में किसी भी प्रकार की कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए। रेचक करते समय जल्दबाजी में नहीं करना चाहिए।इसलिए निश्चित की गई मात्रा या प्रमाण सब दोहराव की क्रिया में अच्छे से समझ लेना चाहिए। कुंभक का प्रमाण निश्चित करने के बाद उस आधार पर पूरक और रेचक का प्रमाण खुद-ब-खुद। ठहराया जाएगा।

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