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अनुलोम विलोम प्राणायाम किसे करना चहिए?

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अनुलोम विलोम प्राणायाम किसे करना चहिए?   अनुलोम विलोम : प्राणायाम यह एक ब्रिथिंग (सांसों ) एक्सरसाइज है। इसे जो स्वास्थ है, वह बच्चे, जवान और वयस्क भी कर सकते हैं। यह करने में आसान और काफी असरदार है। हम हमारे नियमित व्यायाम में से या खेल प्रैक्टिस के साथ सिर्फ 10 से 15 मिनट प्राणायाम को देना चाहिए, जिससे हमें काफी अच्छे नतीजे मिलते हैं। हमारी ऑक्सीजन लेने की क्षमता में बढ़ोतरी होती है। साथी हमारी एकाग्रता बढ़ती है, पढ़ाई में मन लगता है और जो खिलाड़ी होते हैं उन्हे अपना खेल कौशल बढ़ाने में भी मदद मिलती है। अनुलोम विलोम से प्राणायाम की शुरुआत करना अच्छा होता है। यह करने में भी काफी आसान है।   विधि   1 पद्मासन अथवा सिद्धासन में बैठ जाए। 2 नाक की दाहिने वाली नाक पुडी से सीधे हाथ के अंगूठे से बंद कर बाय नाकपुडी से लंबी सांस भरे। 3 अब बाय नाक की पुड़िया को बंद कर दाहिने साइड से सांस को पूरा छोड़े। 4 इस तरह से बाय से सांस भर कर दहीने से छोड़े। 5 इस प्रकार शुरू में 10 -10 के तीन संचो में यह अभ्यास करना है।   लाभ  1 नाडीशुद्धि यह एक प्राणायाम का असरदार तरीका है, इससे फेफड़ों के सभी विकार दूर हो

कपालभाति प्राणायाम

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  कपालभाति प्राणायाम   प्राणायाम: भारत के प्राचीन आयुर्वेद का अर्वाचीन वैदिक शास्त्र से गहरा संबंध है। इसलिए भारत में ही नहीं बल्कि पाश्चात्य देशों में भी काफी संख्या में लोग प्राणायाम करते हैं। नियमित रूप से प्राणायाम करने से बेहतर स्वास्थ्य का लाभ होता है। साथ ही हमारे लग्ज (फेफड़े) की कार्य क्षमता बढ़ती है और ज्यादा मात्रा में ऑक्सीजन हमारे शरीर में पहुंचता है।   कपालभाति    कपाल का संस्कृत में माथा ऐसा अर्थ होता है, और भाती का अर्थ प्रकाशमान ऐसा होता है। इसलिए माथे का तेज बढ़ाने वाला यह व्यायाम प्रकार है।   विधि 1 पद्मासन अथवा सिद्धासन में बैठ जाए।  2 हाथ अपने घुटने पर रखकर आखें बंद कर ले। 3 अब लंबी सांस लेकर पेट को अंदर की तरफ फसलियो को लगाने की कोशिश करें।  4 यह क्रिया लगातार 10 से 20 बार करें। 5 इस क्रिया को तीन आवर्तनो में करें।   लाभ  1 कपालभाति प्राणायाम करने से माथा, श्वसन संस्था और स्वशण मार्ग खुल जाता है। 2 हमारे फेफड़ों में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ जाती है। 3 शरीर में से कार्बन डाइऑक्साइड बड़ी मात्रा में बाहर निकाल कर खून की शुद्धिकरण का कार्य होता है। 4 हृदय, स्वशन संस्था,

हर माँ बाप को यह जान लेना चाहिए?

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 हर माँ बाप को यह जान लेना चाहिए? वय संधि : परिपक्वता यह एक महत्वपूर्ण और काफी जटिल प्रक्रिया है। वय संधि का मतलब बच्चों की बचपन से लेकर मैच्योर (पुरुष ) होने तक का सफर होता है ।  इस लंबे दौर में काफी जटिल और विविध स्थितियों का उतार-चढ़ाव देखने को मिलता है । यह उम्र लड़कों में 12 वर्ष से 19 वर्ष तक होती है, वहीं लड़कियों में यह अवधि 10 वर्ष से 16 वर्ष के आसपास होती है। साधारणत: लड़कियां लड़कों के मुकाबले जल्दी समझदार होती है। इस दौर में बच्चों की लंबाई, वजन, और समझदारी बढ़ती है । अचानक आए इस बदलाव को संभाल पाना बच्चों के लिए थोड़ा मुश्किल होता है। इस वक्त में बच्चों की सोच बन रही होती है। वह स्वतंत्र रहना चाहते हैं, अपने फैसले खुद लेना पसंद करते हैं। नई सोच से अपनी मर्जी में रहना पसंद करते हैं। सब चीजें करके देखना चाहते हैं, अच्छे और बुरे का फैसला खुद करना पसंद करते हैं। अपनी सोच को सच करने का प्रयास करते हैं।  लड़कियों के लिए भी यह समय काफी उलझन भरा होता है। लड़कियों के शरीर में हुए बदलाव से बहुत सारे प्रश्न को जानने की वह कोशिश करती है। लड़कियां भी सपनों की दुनिया में विहार करती है ।

शारीरिक स्वस्थता (फिटनेस) के घटक। components of physical fitness

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 शारीरिक स्वस्थता (फिटनेस) के घटक ( components of physical fitness ) व्यायाम वैधन्यानिकोने उन दस घटकों  की पहचान की है जिनसे फिटनेस की परिभाषा बनती है।  यह घटक इस प्रकार है। १ ताकत - उस सीमा तक जहा विरोध के बावजूद पेशीयो को सिकुड़ने तथा संकुचित होने की क्रिया से ताकत अथवा बल पैदा कर सके। (किसी व्यक्ती या वस्तु को  पकड़े या थामे रहना।) २ शक्ति - ज्यों ही कोई विस्फोटक क्रिया होती हो, तत्काल पेशी को अधिक सिकुड़ने की क्षमता  ( कूदना या स्प्रिंट स्टार्टिंग) ३ गति - अवयवों की द्रुत गति क्रिया, चाहे वह धावक की टांग हो अथवा गोला फेंकने वाले खिलाड़ी की बाजू। ४ संतुलन - शरीर की स्थिति को नियंत्रित करने की योग्यता, यह खड़ी अवस्था हो या क्रायात्मक अवस्था हो। ( जिम्नास्टिक क्रियाए ) ५ फुर्ति - विस्फोटक शक्ति क्रियाओं की शृंखला विपरित दिशा में तेजी से संपन्न करने की योग्यता  ही फुर्ती है। (टेढ़ा - मेढा दौड़ना  या तीखी  क्रियाए) ६ लचीलापन - अत्यधिक   टिशूओ द्वारा बाधा डाले बीना गति की विस्तारित। सीमा को हासिल करने की योग्यता।  ७ सीमित पेशी सहनशिलता - दीर्घीकृत कार्य को एकल पेशी योग्यता से संपन्न

शरीर के अंग और लापरवाही से होने वाले रोग।Diseases caused by body parts and carelessness...!

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  शरीर के अंग और लापरवाही से होने वाले रोग... ! Diseases caused by body parts and carelessness...! 1 ) पेट:- जब तबीयत खराब हो जाए, सुबह नाश्ता न करने पर......  2) किडनी :- जब आप 24 घंटे में 10 गिलास पानी नहीं पीते हैं......   3) गॉलब्लैडर :- जब यह खराब हो जाए, जब आप 11 के भीतर न सोएं और सूर्योदय से पहले न उठें......   4) छोटी आंत :- जब यह खराब हो जाती है, जब आप ठंडा और बासी खाना खाते हैं.......   5) बड़ी आंत :- जब यह खराब हो जाती है, जब आप अधिक तला-भुना और मसालेदार खाना खाते हैं.......   6) फेफड़े:- जब वे खराब हो जाते हैं, जब आप धुएं, धूल और सिगरेट के बटों से प्रदूषित वातावरण में सांस लेते हैं......   7) लीवर :- जब यह खराब हो जाए, जब आप तला-भुना, जंक और फास्ट फूड खाते हैं......   8) दिल:- जब तबीयत खराब हो जाती है, जब आप नमक और वसा के साथ-साथ रिफाइंड तेल से भरपूर आहार लेते हैं.......   9) अग्न्याशय:- जब यह खराब हो जाए, जब यह आसानी से मिल जाए और इसका स्वाद अच्छा हो तो अधिक मिठाई खायें......   10) "आँखें" :- जब बात बिगड़ जाए, जब आप अँधेरे में मोबाइल और कंप्यूटर पर काम करते हैं..