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उत्कटासन करणे की विधी और लाभ।

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  उत्कटासन ।  यह उत्तम आसनो में से एक आसन  है। इस आसन से पैर की उंगलियां,  जोड, और स्नायू  सशक्त और मजबूत बनते है।   यह आसन करणे का तरिका  नीचे  दिया गया है। विधी-  1  दोन पैर पर सीधे खडा होना है। 2 दोनो हाथ  सर के ऊपर मिलाना है। इस समय हाथ कोहनी मे से शिधे राखना है। 3  बाद में घुटने में से धीरे-धीरे  झुकना है और अर्ध बैठक अवस्था में आना है।  4 इस अवस्था मे कम से कम 30 सेकंद से अधिक समय रुकना है। 5 यह सब करने के लिए विशेष शक्ती अथवा श्रम की  आवश्यकता नहीं होती। सिर्फ शरीर का तोल सवरना यह अधिक महत्वपूर्ण है।   थोडे पतले और सुदृढ शरीर के धारना के लोग इस आसन को अच्छी तरीके से कर सकते हैं।   फायदे- 1  यह आसन नियमित रूप से करने से। हाथ और पैर के पंजे मजबूत होते हैं। 2 हाथ, पैर निरोगी रखने के लिए यह असर बहुत उपयोगी है। 3 कुंडलिनी जागृत होती है।  4 भगंदर, जलोदर, बद्धकोष्ठता, पेट के सभी विकार, रक्त विकार , चर्म रोग,  हृदय और संधीवात  आधी व्याधि को यह आसन नष्ट करता है। 5  इस आसन से शरीर संतुलन रहता है। 6 इस आसन से कमर की चर्बी दूर होकर कमर मजबूत बनती है।  7 शारीरिक शक्ति व प्राणायाम क्षमता का व

भोजन की आवश्यकता और कार्य।

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  भोजन की आवश्यकता और कार्य।  प्रत्येक मनुष्य को स्वस्थ रहने के लिए और अपने दैनिक कार्य को सुचारु रुप से करने के लिए शक्ति की आवश्यकता होती है। वह शक्ति उसको भोजन के द्वारा ही मिल सकती है। भोजन में अनेक प्रकार के तत्व मिले रहते हैं, जैसे कार्बोहाइड्रेट वसा विटामिन, खनिज, लवण, प्रोटीन और जल इत्यादि पूरी तत्वों के द्वारा हम अपने शारीरिक मानसिक कार्य को पूर्ण कर सकते हैं। यदि उपरोक्त तत्वो में से किसी की भी कमी हो जाती है तो व्यक्ति कमजोर होता है।         इसके कारण वह रोग से ग्रसित हो सकता है इसलिए व्यक्ति को पोषक आहार की आवश्यकता होती है।   भोजन का कार्य   1 भोजन तत्वों से एंजाइम तथा हार्मोन्स बनता है जो शरीर के लिए लाभकारी होता है। 2 भोजन के द्वारा शरीर का निर्माण और मरम्मत का कार्य भी होता है। 3 भोजन शरीर को शक्ति प्रदान करता है। 4 भोजन द्वारा रोगों से रक्षा भी होती है।  5 भोजन से  उत्तको का  को का रखरखाव होता है, और उनके के कार्यों पर भी नियंत्रण होता है।

वृक्षासन करणे की विधी और लाभ।

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  वृक्षासन!  इस आसन में हमारे शरीर का आकार वृक्ष के समान दिखता है इसलिए इसे वृक्षासन कहा जाता है।   कृति / विधि-  1 सबसे पहले कोई भी एक पैर पर सीधे खड़े रहना है। अगर शरीर का तोल एक पैर पर संभालना मुश्कील होतो दीवार का सहारा ले सकते हैं। 2 उसके बाद दूसरा पैर घुटने में से मोड कर पहले पैर के जांघ के ऊपर रखना है। 3 दोनो हाथ सर से उपर मीलाए। 4 इस स्थिती मे आकाश की तरफ नमस्कार की स्थिती प्राप्त होगी। 5 इस स्थिती मे धिरे-धिरे सांस भरना है। साधारणत: 10 सेकंड तक ऐसी स्थिति में रुकना है। इसके बाद यह  क्रिया दूसरे पैर से भी करनी है।  6 एक बार में से चार से छह बार यह क्रिया सकते हैं।  फायदे/ लाभ - 1 इस आसन से शरीर के हर जोड को अच्छा व्यायाम मिलता है। 2 इस आसन में हमारे पैर की उंगलीया, घुटने, हाथ के जोड़, आदी मे अच्छा रक्त प्रवाह संचालित होता है। 3 पैर मजबूत, छाती भरदार और शरीर सुडौल बनता है। 4 इससे शरीर की धारणा शक्ति में बढ़ोतरी होती है।  5 भावना की पोषण के लिए यह आसन उपयोगी है।