संदेश

मार्च, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सुप्त वज्रासन करणे की विधी और लाभ।

चित्र
  सुप्त वज्रासन!   सुप्त वज्रासन की अवस्था अर्धशवासन के जैसी होती है। कुछ मात्रा में वह मत्स्यासन के कक्षा में मानी जाती है। वज्रासन करने में कौसल्या प्राप्त होने के बाद ही यह आसन करना चाहिए। यह आसन वज्रासन से शरीर को अधिक शक्ति प्राप्त कर कर करा देती है।   कृति/ विधि।  1 प्रथम वज्रासन अवस्था में बैठना है। 2 हातो के सहारे जमीन पर सोना है। 3 पीठ को जमीन का स्पर्श होना चाहिए। 4 आपने दोनों हाथ की घड़ी बनाकर छाती पर रखे या अपने शरीर के बाजू में जमीन पर भी रख सकते हो। इस प्रकार सर को अंदर खींचना है।  5 8 से 10 से सेकंड इस अवस्था में रहना है। 6 शुरुआत में कुछ दिन रीढ़ की हड्डी / पीठका पूरा भाग जमीन पर नहीं टिकेगा। पर नियमित सराव से यह अच्छी तरह  से कर सकते हैं ।  7 इस आसन की दिन में तीन से चार वर्तने कर सकते हो।  लाभ / फायदे 1 इस आसन में रीढ़ की हड्डी को पीछे के बाजू में खिंचा जाता है, इससे पीठ का  बाकंपन होगा, वह इस आसन से चले जाता है और रीढ़ की हड्डी मजबूत बनती है। 2 यह आसन नियमित करने से कुंडलिनी ऊर्ध्वगमन करने लागती है। 3 पैर के संधि और स्नायु मजबूत बनते हैं। 4 छाती, रीड की हड्डी और गर्द

बकासन करने की विधी और लाभ।

चित्र
  बकासन  हमारे शरीर को सर्वांगीन फायदा देने वाले आसनो में से एक आसान है। कृति/विधी- 1 दोनों हाथ के पंजे जमीन पर रखकर दोनों हाथ के सहारे शरीर को ऊपर उठाना है। 2 दोनों पैरों की घुटनो के सहारे  हाथों पर सहारा लेकर अपने शरीर को पकड़े रखना है। 3 इस अवस्था में सांस रोक कर रखनी है। 4 शुरुआत में कुछ दिन यह आसन कुछ देर ही करें। उसके बाद धीरे-धीरे अपना समय बढ़ाते जाए।  तब सास को रोकने की जरूरत नहीं है। बकासन से होने वाले लाभ।  1 इस आसन से पूरे शरीर को अच्छा व्यायाम मिलता है। विशेषता छाती और पेट के स्नायु मजबूत और सुदृढ बनते हैं। रीड की हड्डी मजबूत बनती है। 2 इस आसन में सांसों की गति ऊर्ध्व होने से मन की चंचलता कम होती है, और मन शांत और स्थिर बनता है। 3 उथीत पद्मासन से प्राप्त होने वाले सभी लाभ इस आसन से प्राप्त होते हैं। 4 उसके नियमित सराव से पचन संस्था, श्वसनसंस्था और मजातंतु कार्यक्षम बनते हैं। 5 शरीरधरना शक्ति और संतुलन क्षमता में वृद्धि होती है। नोट- बकासन की स्थिति में। कपालभाति करने से होने वाले लाभ द्विगुणित होते हैं। मात्र अच्छे सराव के बाद ही कपालभाति शोधन क्रिया करनी चाहिए।

बद्ध पद्मासन करणे की विधी और लाभ।

चित्र
  बद्ध पद्मासन  यह पद्मासन का ही प्रकार है। इसे आरोग्य प्राप्ति और शरीर सामर्थ्य और सुदृढ बनाने के लिए इसका उपयोग किया जाता है। यह आसन कस्टदाय होने की वजह से जो लोग यह आसन नहीं कर सकते हैं उन्होंने जिद और सतत प्रयास से यह आसन करते रहना चाहिए।   कृति / विधि 1 पैर की मांडी डालकर पद्मासन में इस तरह से बैठना है कि दोनों पैर की टाच को अपनी ओटी पेट से स्पर्श हो। 2 उसके बाद दोनों हाथ पीठ के पीछे ले जाकर हाथ की कैची बना कर ( क्रॉस)हाथो से पैर के अंगूठे को पकड़ना है। 3 शुरुआत में कुछ दिन हाथ में पकड़ने के लिए मुस्किल होगा ऐसा होने पर सामने झुक कर पैर का अंगठा पकड़ कर फिर पीठ को सीधा करना है। और सीधा बैठना है। 4 यह आसन करते समय सांस की गति मंद जारी रखनी है। यह आसन 1 मिनट से लेकर। आगे अपना समय बढ़ा सकते हैं। फायदे/ लाभ  1 इस आसन में दोनों घुटने और घुटने के जोड़ों पर जोर पड़ता है। इस वजह से हमारे जोड मजबूत होते हैं। 2 दोनों पैर के पंजों को अच्छी तरह से व्यायाम मिलता है। 3 यह आसन करने से रीड की हड्डी की दुर्बलता खत्म होकर घुटने के जोड तथा जोडो का दर्द खत्म हो जाता है। 4 शारीरिक एक अच्छे सांचे मे आत

नटराज आसन करणे की विधी और लाभ।

चित्र
  नटराज आसन। यह आसन में हमारे शरीर की आकृति नटराज की तरह दिखती है इसलिए इस आसन को नटराज आसन कहा जाता है।   विधी/ कृति-   1 सबसे पहले दोनों पैर पर सीधे खड़े रहना है।  2 दोनों हाथ शरीर को के पास रखने हैं नजर सामने रखना है। 3 दोनों पैर सीधे रखकर शुरुवात दाहिना पैर पीछे से उठाकर दहीने(शिधे) हाथ से उसके पंजे को पीछे से पकड़ना है।  4 बाया हाथ थोडा उपर उठाकर  सीधा रखना है। और नजर हाथ पर रखणी है। 4 शुरुआत में यह आसन। चार से पांच बार और बाद मे यह आसन दस बार करना है।  नटराजसन नियमित रूप से करणे से होने वाले लाभ। 1 शरीर के हर एक जोड को अच्छा व्यायाम मिलता है। 2 यह आसन नियमित करने से कंधा, घुटना, पैर के स्नायु, हाथ के स्नायु और रीड की हड्डी को लाभ होता है।  3 कमर दर्द दूर होकर। वह मजबूत बनती है। 4 शरीर की संतुलन क्षमता बढ़ती है। 5 संकल्प शक्ति का पोषण होता है। 6 भावना भीव्यक्ति संतुलन रखने में इस आसन का उपयोग होता है। 7 इस आसन से हाथ, पैर सुदृढ होकर। हमारी कार्य क्षमता मे बांढोत्तरी होती है।